भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मधुमास / रामचन्द्र त्रिपाठी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:43, 31 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामचन्द्र त्रिपाठी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आइल मधुर मधुमास हे, अब बोले कोइलिया
धनी-धनी बगिया में लगले मोजरिया
घुँघुट उठाए जइसे निकले गुजरिया
लागल टिकोरवा के आस हे, अब बोले कोइलिया।
तीसी फुला गइली, सरिसा फुलाइल
बासंती धरती के सारी रँगाइल
शोभा के सुन्दर निवास हे, अब बोले कोइलिया।
झारी-झुरि देहिया प्रकृति फुलकाइल
आरि-आरि उपवन में जुहिया फुलाइल
मन्द-मन्द बहे बतास हे, अब बोले कोइलिया।
केहू मुसुकाइल, केहू कोंढ़ियाइल
सौरभ के सागर में मनवा भुलाइल
हँसलस ठठा के परास हे, अब बोले कोइलिया।
लदराइल जामुन के गाल ललियाइल
बीच-बीच केतना अधिक करियाइल
ललचाइल मन बेतहाश हे, अब बोले कोइलिया।
महुआ में महुआ के फूलवा गुँथाइल
बहे पुरवइया अधिक सरसाइल
मोती टँगाइल अकाश हे, अब बोले कोइलिया।
धीरे-धीरे अमवाँ अधिक पियराइल
बहल बेयरिया, बहुत भहराइल
कइलस तूफानवाँ विनाश हे, अब बोले कोइलिया।
नाचे अशोकवा के लह-लह पतइया
आजो नाहीं अइले घरवा पर सइयाँ
बिरहिन के मनवा उदास हे, अब बोले कोइलिया।
पिया-पिया कहि के पपीहा पुकारे
मुरझाइल जियरा के रहि-रहि के जारे
बहे पवन उनचास हे, अब बोले कोइलिया।