भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी अक्ल-ओ-होश की / जॉन एलिया

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:08, 1 सितम्बर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

मेरी अक्ल-ओ-होश की सब आसाईशें
तुमने सांचे में ज़ुनूं के ढाल दी
कर लिया था मैंने अहद-ए-तर्क-ए-इश्क
तुमने फिर बाँहें गले में डाल दी

यूँ तो अपने कासिदाने-दिल के पास
जाने किस-किस के लिए पैगाम है
जो लिखे जाते थे औरो के नाम
मेरे वो खत भी तुम्हारे नाम हैं

ये तेरे खत, तेरी खुशबू, ये तेरे ख्वाब-ओ-खयाल,
मताऐ-जाँ है तेरे कौल-ओ-कसम की तरह

गुजश्ता सालों मैनें इन्हे गिन के रखा है
किसी गरीब की जोड़ी हुई रकम की तरह

है मुहब्ब्त हयात की लज्जत
वरना कुछ लज़्ज़त-ए-हयात नहीं
क्या इज़ाज़त है एक बात कहूँ
मगर खैर कोई बात नहीं