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चाननी के खटोली / बैद्यनाथ पाण्डेय 'कोमल'

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चाननी के चढ़-खटोली, चाँद गाना गा रहल बा।
बस सितारन के जिया में
राग उमड़ल बा मधुर रे।
नीलिमा बिहँसल गगन में
अब हटा के घन चिकुर रे।
मौन स्वर के ऊ तराना कर्ण-पुट में आ रहल बा।
बिछ पड़ल अब घास-तरु पर
रे सुधा रस के फुहेरा;
हो गइल धरती-गगन फिर
हीर-मोती के बसेरा;
स्वर्ग के मधुमय छटा के अब धरा पर ला रहल बा।
गंध रजनीगंध के अब
कर रहल परिणय हवा से;
पी रहल बा अब चकोरक
चाननी रस के पियासे;
याद सूतल रे जिया में आज पुनः जगा रहल बा।
बा क्षितिज के पार
चन्दा के अकेला एक डेरा
बस जहां अँकवार लेके
हुलसि के भेंटी सबेरा;
गीत गावत, रस रसावत, बस वहीं पर जा रहल बा।
चाननी के चढ़ खटोली, चाँद गाना गा रहल बा।