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दोहे / शत्रुघ्न पाठक
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जाति-धरम के दौर में, हरदम रहीं सतर्क।
के जोड़ी, के तूर दी, बहुत कठिन बा फर्क॥
धरम-करम सब ताक पर, धनदौलत सिरमौर।
छल-प्रपंच के राज में, श्रम के कहवाँ ठौर॥
जनता के सेवक कहे, वादा करे अनेक।
उल्लू निज सीधा करे, निसिदिन सहित विवेक॥
भाई-बंधु सब गैर हऽ, कहाँ रहल एतबार?
बीबी-बच्चा जोड़ के, नया बनल परिवार॥
मिलल शहर में नौकरी, गाँव भइल परदेश।
परियच पूछत-देत में, छुट्टी गइल अशेष॥
बेटी पिछला पाप हऽ, बेटा पुण्य प्रसाद।
बेटा टी.वी. कार दी, बेटी दी अवसाद॥