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न तू ज़मीं के लिए है / साहिर लुधियानवी
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न तू ज़मीं के लिए है, न आसमाँ के लिए ।
तेरा वुजूद है अब सिर्फ़, दास्ताँ के लिए ॥
पलट के सू-ए-चमन देखने से क्या होगा,
वो शाख ही न रही, जो थी आशियाँ के लिए ।
ग़रज़-परस्त जहाँ में वफ़ा तलाश न कर
यह शैय बनी थी किसी दूसरे जहाँ के लिए ।