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जन्म / अमृता भारती

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मैं हरे पेड़ोंके नीचे खड़ी थी
सिर पर पुआल ले कर
पेड़ मेरे नहीं थे
पर पुआल मेरी थी --
शीत के लम्बे मौसम में
मैं आग जला सकती थी
या
एक नर्म बिछौना बना सकती थी ।

जीवन की उर्वर भूमियों पर