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न लीजै संग / गिरिधर

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जाको धन, धरती हरी, ताहि न लीजै संग।

ओ संग राखै ही बनै, तो करि राखु अपंग ॥

तो करि राखु अपंग, भीलि परतीति न कीजै ।

सौ सौगन्दें खाय, चित्त में एक न दीजै ॥

कह गिरिधर कविराय, कबहुँ विश्वास न वाको ।

रिपु समान परिहरिय, हरी धन, धरती जाको ॥