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अभागिन भुइयाँ / लाला जगदलपुरी
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तैं हर झन खिसिया, मोर अभागिन भुइयाँ
निचट लहुटही दिन तोर अभागिन भुइयाँ।
मुँह जर जाही अँधियारी परलोकहिन के
मन ले माँग ले अँजोर अभागिन भुइयाँ।
पहाड़-कस रतिहा बैरी गरुआगे हे
बन जा तहूँ अब कठोर अभागिन भुइयाँ।
कखरो मन ला नइ टोरे तैं बनिहारिन
अपनो मन ला झन टोर अभागिन भुइयाँ।
आ गे हवे नवाँ जुग बदले के बेरा
नवाँ बिहान ला अगोर अभागिन भुइयाँ।