भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैसे कटी जिनगी हमार / भोजपुरी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:15, 21 सितम्बर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कइसे कटी जिनगी हमार
दई हो का हम कइलीं तुहार कि दु:ख हमें दे
दिहल..अ...
कि सुख मोर ले लिहल... अ... अ..
चारों तरफ भईंल अन्हार
हे सिरजनहार लगा द पार कि बड़ा दु:ख दे दिहल... अ...