बरसात / भूपिन्दर बराड़
ताप से जलते
खुरदुरे हाथों वाले बच्चे
बुदबुदाते हैं: माँ
और बरसात होने लगती है
बरसात उनके सरों को सहलाती है
रूखे बालों में उँगलियाँ बन फिरती है
कनपटियों पर चुम्बन बन जाती है
ताप से जलते बच्चे बुदबुदाते है:
माँ, गुब्बारे गिर रहें हैं आकाश से
वर्षों से छिने
सारे के सारे गिर रहे हैं हाथों में
उनको पकड़ो माँ, वे फुदक रहे हैं गलियों में
बरसात बच्चों के लिए
गोद बन जाती है
काम पर निकली उनकी माँएं
लौट नहीं पाती जब
बरसात ही बच्चों को
लोरियां सुनाती है
ताप में जलते बच्चे कहते हैं:
हमारे स्कूल से छूटते ही माँ
छूट पड़ी बरसात
रंगों में घुल
पक्षी बन गयी पेड़ों में
बरसात उनके नथुनों में
गीली मिट्टी की
गंध बन जाती है
धमनियों में
अंतहीन प्यार बन गाती है
नन्ही बहनों के होठों पर
टपकती है दूध सी
खेतों तक बच्चों के
सन्देश पहुँचाती है
बच्चे इंतज़ार करते हैं
पिता के लौटने का
बेगाने खेतों में खो चुके पिता
लौट नहीं पाते जब
बरसात कट गयी पतंगों की
हवा में अटकी
डोरियों -सी कांपती है
सूनी आँखों में लटके
सपनों सी झांकती है
शिथिल मौसमों के
इस आशाहीन शहर में
ताप से जलते बच्चे
बुदबुदाते हैं: बरसात