हरियाणवी कुण्डलियां / रामफल चहल
हरियाणवी लोक साहित्य पर अमीर खुसरो का काफी प्रभाव है क्योंकि उनकी रचानाएं खड़ी बोली में भी थी तथा कुण्डलियां भी उन्होंने काफी लिखी जिनमें दूसरी पंक्ति के अंतिम हिज्जे की पुर्नावृति तीसरी पंक्ति के पहले हिज्जे में होती है तथा कुण्डली का पहला हिज्जा उल्टा करके अंतिम हिज्जा बनाया जाता है।
1.
फागण फगुआ फूलग्या इब फर फर चाल्लै बाल़
याणी स्याणी कट्ठी होकै गोरै मारै छाल़
गोरै मारैं छाल़ आज कट्ठी हुअै लुगाई
कमला बिमला पुष्पा नाचै अर नाचै चाची ताई
बेरियां के बेर पाकग्ये चण्यां के टाट लगी लागण
गेहुआं की इब बालअ् फूलग्यी फूलग्या फगुआ फागण
2.
एक ससुर घर दो बहु आपस मैं करती रगड़ा
कोण चुकाव न्याय उनका मिटता कोन्यां झगड़ा
मिटता कोन्यां झगड़ा न्यूं घर म्हैं ए लाग्य दरबार
सुसरा जेठ और देवर हारे फेर कंथै करी पुकार
न्याय कंथ न पड़ रह्या महंगा क्यूकर राखै टेक
नौलड़ हार मंगा दयूं थारा चुंदड़ी ल्यादूं एक
3.
झंकार उठी नाड्यां की गोरै धरती दलकण लागी
मस्ती छाई चारूं ओेर नें सब के मन म्हं भाग्यी
सबके मन मैं भाग्यी टोकणी ल्यावण भेजैं रेवाड़ी
पतली कमर का नाड़ा मांगै मांगै बनारसी साड़ी
फागण की चौदस नै आज लापसी की उठै मंहकार
गोरै के म्हां गोरी नाचै नाड्या की उठी झंकार
4.
ढ़ाल बुरकले ले कै चाल्ली होली की करली पूजा
प्रह्लाद भगत न आज बचावै काम नहीं कोए दूजा
काम नहीं कोए दूजा मन मैं साच्ची लगी लगन
शील वस्त्र तैं ए प्रह्लाद बचै सब मिल कै करें भजन
बहादुर छोरे डाण्डा काढ़ैं जब उठै होली मैं झाल
ढप बजा होली मंगलावै प्रह्लाद न बचावै ढाल
5.
बाज्जै नाड़ा हो रह्या खाड़ा हुई गौरयां म्हं तकरार
ओढ़ पहर चाल्ली पाणी नै बण्या होल़ी कोड़ त्युहार
बण्या होली कोड़ त्युहार देख रहे खड़े खड़े भरतार
देख कमर की झोल जब गालां म्हं पड़ी किलकार
काला दाम्मण कुरता धोल़ा गल मैं कंठी साज्जै
सिंगर कै जब गोरी लिकड़ै गालां म्हं नाड़ा बाज्जै
6.
गुलाल उडै गालां मैं सबकै चेहरे छाई आब
मिजाजण तैं होली खेलण आवै आप नवाब
आवै आप नवाब हो रहे गोरयां मैं हुड़दंग
पाणी गेरैं लगैं कोलड़े भंग पिए पड़े मलंग
बुड्ढे़ बालक खेलैं सारे ना उम्र की कोए संभाल
रंग बरसै फागण का सारै गालां म्हं उड़ै गुलाल
7.
कासण बासण बांटण लाग्गे होण लगे न्यारे-न्यारे
राण्ड़यां की कती कद्र घटा दी लागण लगै सबने खारे
लागण लगै सबने खारे आज बांटै सोड़ सोड़िया
रोज बंटवारे होण लगे जब तैं आई नई बोहड़िया
याणा बालम बोल्लै कोन्या बोल्लै बहु सुवासण
कहै चहल सब रोला फागण का बांटे बासण कासण
8.
फागण फगुआ फूल लिया इब चैत मैं लागै चिन्ता
देवर भाभी करांगे कटाई साथ मैं ले लिया कन्ता
साथ मैं ले लिया कन्ता आज सब चाल पडै खेतां म्हैं
होले भून्नै गन्ने चूसैं सरसम काटैं रेतां म्हैं
सूट पहर चाल्ली खेतां म्हैं चौकस धर लिया दाम्मण
कहै चहल इब दाती ठाले जा लिया फगुआ फागण