भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उनका हालु न पूछौ भैया / उमेश चौहान

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:22, 26 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमेश चौहान |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatAwa...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उइ पैदा तौ भे रहैं हिंयै
गाँवैं कै कौनिउ सौरि माँ
तेलु-बाती कै उजेरिया माँ
उइ पले-बढ़े रहैं हिंयै
माटी माँ लोटि-पोटि,
भैंसिन का दूधु-माठा
भूड़न के बेर-मकोइया
ओसरिन कै गुल्ली-डंडा
पतौरिन कै लुका-छिपी
अंबहरी कै लोय-लोय
निम्बहरी का सावन-झूला
अरहरिया कै रासु-लीला
दुपहरिया के तास-पत्ता
कैसे बिसराय सबै
उइ ब्वालै लागि अंगरेज़ी
उइ बसे नई दुनिया माँ
उइ रोमु-रोमु बदलि गए
बहुतन के भाग्य-विधाता भे
अबु उनका हालु न पूछौ भैया।

उइ कबौ-कबौ आवति हैं
गर्दा ते मुँहु बिचकावति हैं
पत्नी का नकसा औरु बड़ा
अमरीकी फैशनु खूबु चढ़ा
लरिकन का हिन्दिउ ना आवै
अंगरेजिउ उच्चारनु दूसर
उनका स्वदेसु अब ना भावै
उनकै पैदाइस हुँवै केरि
उनका स्वदेसु अमरीकै भा
देवकी माता जस भारत है,
चाहत माँ कौनिउ कमी नहीं
स्कूलु गाँव माँ खोलि दिहिन
लरिका अंगरेज़ी सीखि रहे
कम्प्यूटरु माँ सीडी ब्वालै
उच्चारनु सीखैं अमरीकी
उनकी इच्छा अब याकै है
अमरीका माफ़िक बनै गाँव
लेकिन अंगद का पांव गाँव
यहु जहाँ रहै, है जमा हुँवै
उइ येहिके लिए बहेतू भे
परदेसी भे, उपदेसी भे,
अबु उनका हालु न पूछौ भैया।