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बड़ि जुड़ि एहि तरुक छाहरि / विद्यापति

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बड़ि जुड़ि एहि तरुक छाहरि, ठामे ठामे बस गाम।
हम एकसरि, पिआ देसाँतर, नहि दुरजन नाम।
पथिक हे, एथा लेह बिसराम।
जत बेसाहब किछु न महघ, सबे मिल एहि ठाम।
सासु नहि घर, पर परिजन ननन्द सहजे भोरि।
एतहु पथिक विमुख जाएब तबे अनाइति मोरि।
भन विद्यापति सुन तञे जुवती जे पुर परक आस।