भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मायूस तो हूं वायदे से तेरे / साहिर लुधियानवी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:44, 27 सितम्बर 2013 का अवतरण
मायूस तो हूं वायदे से तेरे, कुछ आस नहीं कुछ आस भी है.
मैं अपने ख्यालों के सदके, तू पास नहीं और पास भी है.
दिल ने तो खुशी माँगी थी मगर, जो तूने दिया अच्छा ही दिया.
जिस गम को तअल्लुक हो तुझसे, वह रास नहीं और रास भी है.
पलकों पे लरजते अश्कों में तसवीर झलकती है तेरी.
दीदार की प्यासी आँखों को, अब प्यास नहीं और प्यास भी है.