भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेटियां-2 / सुधा उपाध्याय

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:39, 28 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा उपाध्याय |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेटियां
होती हैं आँख की रौशनी
दाल में हल्दी
सब्जी में नमक
माँ के प्रसव की पनियल दमक
पिता की आँख का मोती
चुन्धियाने लगती हैं
अडोस पड़ोस की आँखें
घर छोड़ कर जातीं हैं जब
पिता को दे जाती हैं मोतियाबिंद
माँ को रतौंधी