भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी भूमिका / प्रताप सहगल

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:48, 28 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप सहगल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बड़ी मज़ेदार बात है
इस दुनिया की
कि लोग रोज़ ब रोज़
बदल जाते हैं
इस बदवाल में ही तो
मैं भी चला आया यहाँ
अब चला आया तो चला आया
किसी नामालूम सी जगह से
आया तो आँखें भी खुलीं
लगा कि ड्यूटी बदलने का वक़्त आ
गया है
ड्यूटी बदलने से पहले
मेरे अग्रज ने
हुए, कुछ अनहुए
और कुछ संभावनाओं के प्रारूप
मेरे हाथ में दे दिए
प्रारूप तो मेरे हाथ में थे
पर प्राथमिकताएँ बदल गई थीं
ड्यूटी बदलने के साथ ही
प्रारूप पढ़ता
काटता, पीटता
करता कुछ संशोधन
तो भी एक बात होती
पर मैंने तो
पूरे प्रारूपों पर ही स्याही उँडेल दी
और फिर
गिद्धों और कबूतरों की बात करता रहा
कुछ नए-नए प्रतीक भी गढ़
लिए
कोई नया प्रारूप तो
तैयार हुआ नहीं मुझसे
बस कुछ सुरंगें लगाईं
और किसी दूसरे की बनाई
इमारत की
दो-चार सीढ़ी चढ़ लिए।