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रुपगर्विता / रामकृष्ण वर्मा 'बलवीर'
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फुलिहें अनरवा सेमर कचनरवा पलसवा गुलबवा अनन्त।
बिरहा विरवा लगायो ‘बलविरवा’ सो फुलिहें जो आयो हैं बसंत।।
रजवा करत मोर रजवा मथुरवा में हमस ब भइलीं फकीर।
हमरी पिरितिया निबाहे कैसे ऊघो,’बलबिरवा’ की जतिया अहीर।।