भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं खुद हाथ आगे बढ़ाता नहीं हूँ / मानोशी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:53, 29 सितम्बर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं खुद हाथ आगे बढ़ाता नहीं हूँ
बढ़ा लूँ कदम, तो हटाता नहीं हूँ

वो चाँद आसमां में ही चमका करे पर
कुछ इक फ़ासले मैं मिटाता नहीं हूँ

मेरी ज़िंदगी में भी दो-चार गम हैं
ये बात और है मैं दिखाता नहीं हूँ

यूँ मैं याद रखता हूँ हरदम खुदा को
बस अपने लिये हाथ उठाता नहीं हूँ

न मांगो ऐ ’दोस्त’ अब जो बस में नहीं है
मैं क़िस्मत बदल दूँ, विधाता नहीं हूँ