Last modified on 29 सितम्बर 2013, at 16:19

किछु गद्य कविता / आशीष 'अनचिन्हार'

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:19, 29 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आशीष 'अनचिन्हार' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

१) सीमा
अर्थ मास्टरमाइन्ड भए सकैत छैक।
मास्टरपीस भए सकैत छैक।
मास्टर नहि।

२) काटब
पेट भरबाक लेल घेंट कटैत छी आ घेंट ऊँच रखबाक लेल पेट

३) दोसराति
जखन भए जाइत छी हम अपने अशक्त।
तखने जरूरति पड़ैत अछि दोसरातिक।

४)
प्रगति १.
शंख। महाशंख। डपोरशंख। हराशंख।

प्रगति २.
कनिया देशी। पिया परदेशी। बच्चा विदेशी।

५) मूलमंत्र
अपन कनियाँक हाथ पकड़ू आ दोसरक कनियाँक करेज।
चिन्हारक गरदनि पकड़ू आ अनचिन्हारक पएर।
कहियो कोनो काजमे असफलता नहि भेटत।

६) मोश्किल काज
कोनो कनैत जीवकेँ चुप्प करब ओतबे मोश्किल काज छैक
जतेक की अपन आँखिक नोरकेँ रोकब।

७ ) सुआद
सोहारी आ गप्प दूनू नून मरचाइ लगेलासँ
सुअदगर भए जाइत छैक ।