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बाँसुरी / रामनाथ पाठक 'प्रणयी'
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बाज रहल बाँसुरी अरार पर कि धार पर ?
सुधा भरल धइल जहाँ,
कि मन उलझ गइल जहाँ
प्रान भइल बावरा श्रृंगार पर कि प्यार पर ?
बाज रहल बाँसुरी अरार पर कि धार पर ?
गते-गते जगा गइल,
कि मीत के सुना गइल,
झूम उठल कल्पना गुलाब पर कि खार पर ?
बाज रहल बाँसुरी अरार पर कि धार पर ?
मधुर अँजोर दा गइल,
कि पास भोर आ गइल,
चाननी चिहुक चलल दिवार पर कि द्वार पर ?
बाज रहल बाँसुरी अरार पर कि धार पर ?