भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदमी के आदमी हाय बा खा रहल / चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह 'आरोही'

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:59, 1 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह 'आरोही'...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आदमी के आदमी हाय बा खा रहल
कइसन रात दिन बा जा रहल

काँट से माली लगावत नेह बा
गम इहे जे फूल बा मुरझा रहल

भूख के मारे अँधेरा छा रहल
आदमी जे चान से आगे बढ़ल

स्वार्थ में सैतान के सरमा रहल
खा रहल बाटे जरह ई जान के

मौत के पगचाप नगिचा आ रहल
मीड़ से कट के अकेला हो गइल
चोट अपने आप बा सहला रहल