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मकान बा सटल-सटल / रामकिशोर प्रसाद श्रीवास्तव
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मकान बा सटल-सटल
हिया मगर बँटल-बँटल
रहल भइल इहाँ कठिन
सनेह मोल बा घटल
पहाड़ पीर हो गइल
मयार आँख ना सटल
जहर भरल हवा इहाँ
बा साँस-साँस से कटल
तमाम उम्र कट गइल
भरम ना प्रीत के हटल