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सखि बसंत आया / मानोशी
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कोयल की कूक तान,
व्याकुल से हुए प्राण,
बैरन भई नींद आज,
साजन संग भाया।
सखि बसंत आया।
लगी प्रीत अंग-अंग,
टेसूओं के लाल रंग,
बिखरी महुआ सुगंध,
मदिरा मद छाया।
सखि बसंत आया।
पाँव थिरक देह हिलक,
सरसों की बाल किलक,
धवल धूप आज छिटक,
सोन जग नहाया।
सखि बसंत आया।
अमुवा की डार-डार,
पवन संग खेल हार,
उड़ गुलाल रंग मार,
सुखानंद लाया।
सखि बसंत आया।