भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जेवहीं बइठेलें दुलहा महादेव संगे / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:45, 11 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जेवहीं बइठेलें दुलहा महादेव संगे लेले भूत बैतालवा हो लाल।
गारी सुनत इनका लाजो ना लागे ला इनका केकर परी गारी हो लाल।
माई ना बाप इन का घर ना दुअरवा से घरे-घरे अलख जगावे हो लाल।
खट्रस व्यंजन इनका नीको ना लागेला खालें नित भंगिया के गोला हो लाल।
दूलहा देखत मोरा जियरा डेरइलें से करेला सरप फुफकरिया हो लाल।
तनिए सा ए शिव जी भेसवा बदलिती रउरा बन जइती राजा के कुँवरवा हो लाल।
निरखे महेन्दर भोला भेस बदललें से मोहि लेले सखिया सहेलिया हो लाल।