भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झनक-झनक झन बिछुआ बाजे / महेन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:05, 11 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)
झनक-झनक झन बिछुआ बाजे।
सेज चढ़त डर लागे।
आधी रात भई जागत पहरूआ,
लागत डरवा
सासु-ननद होइहें जागे। झनक-झनक।
द्विज महेन्द्र जिया मानत नाहीं
काहूसे कहत लाज लागे।
मोरी झनक-झनक झन बिछुआ बाजे।