भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सखि हे चहुँ दिसि घेरे बदरिया / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:15, 11 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सखि हे चहुँ दिसि घेरे बदरिया
हमरी बारी उमिरिया ना।
लवका लवके बिजली चमके
उमिर घुमिर करे शोर बदरिया
सखि हे दूसर रैन अन्हरिया
हमरी बारी उमिरिया ना।
गवना कराई के घरे बइठवलें
पतियो ना हमे निरमोहिया पेठवलें
सखि हे केकरा से भेजीं खबरिया
हमरी बारी उमिरिया ना।
रहितें बलमुआँ त गले लपिटइतीं
रमकि झमकि के रूसतीं मनइतीं
सखि हे हँसि-हँसि गइती कजरिया
हमरी बारी उमिरिया ना।