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अनहद जीवन, अनहद आशा / प्रेम शर्मा
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काहे उदासा
काहे रुँआसा,
काहे रे मनवा
अँसुवन-अँसुवन
अनहद जीवन
अनहद आशा ।
मँच-मुखौटे
नाटक-खेल,
हेला-मेला
बहुरि अकेला,
काहे बावरे
इत-उत भटकन,
जग अनुभव
विपरीत तमाशा।
राम-रमैया
नाव खिवैया
लहर-बहर
बादल- पुरवैया,
काहे परेवा
कुहू-कुहू
अनघट बून्द
जलधि में वासा ।