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सूरज जब ऊपर उठता है / प्रताप सहगल
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सुबह का सुनहरा उज़ाला
घास पर ढरे ओस-कणों को 
दुलारता है
उन्हें प्यार देता है
और देता है
मोरपंखी रंग
यह सुबह का उगता सूरज है।
सूरज को तो ऊपर उठना है
उठता है
दिपदिपाता
लकदक लकदक आलोक फैलाता
कहने को तो सूरज
ऊपर उठता है
पर लील लेता है
अपनी करोड़ों जिह्वाओं से
ओसकणों का मोरपंखी रंग
उन्हें मार देता है।
सवाल सिर्फ इतना ही है
ऊपर उठता सूरज
ओसकणों को
चाट क्यों जाता है?
1985
	
	