भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नये सिरे से / प्रताप सहगल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:11, 14 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप सहगल |अनुवादक= |संग्रह=अँध...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नए सिरे से
क से कविता कहना सीखें
नये सिरे से
शब्दों के हम
अर्थ लगाएं
नये सिरे से
समझें हम फिर
संबंधों को
नये सिरे से
दुनिया का भूगोल बनाएं.

नये सिरे से
रोपें हम
बीजों, पेड़ों को
नये सिरे से
जीना सीखें
छोटा-मोटा तूफान उठाएं.

नये सिरे से जानें
हम मन की खानों को
जैसे भी आडम्बर पलते
उन्हें जलाएं
उतरें गहन गुफाओं में
सम्भव हो तो
तत्त्व जहां भी हो
पहचानें, पाएं
सिक्के-सा खनका के
उसको तुरत उठा लें
पास बहुत ही पास
उसे अपने ले आएं
नये सिरे से पहचानें
हम फिर संबंधों को
नये सिरे से...