भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपना / अर्जुनदेव चारण

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:19, 15 अक्टूबर 2013 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सपना
नीं राखै
परकोटां री कांण
बारै ई जलमै
पसरै,
थूं
वांनै घर में
क्यूं लावै मां
घटतौ बधतौ रैवै
आंख सूं आभै रौ
आंतरौ
कचेड़ियां करती रैवै
न्याव
भुजाळा म्है
रोड़ राखां थनै
गेडियां रै पांण
बांध देवां
बींध देवां
ठौड़-ठौड़ सूं
थूं देह धार
हर बार
गमावै माजनौ।