भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शर्म से पानी-पानी / शशि सहगल
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:00, 16 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि सहगल |अनुवादक= |संग्रह=कविता ल...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आजकल
मन में उठने लगे हैं बहुत सवाल
कुछ सवालों का जवाब
जैसे-तैसे खोज लेती हूँ
पर, कुछ सवाल
खड़े रहते हैं
देते हुए चुनौती
मेरे अस्तित्व को।
ऐसे ही एक दिन मैंने
धर्म-ग्रन्थों से पूछ लिया
कौन हो तुम असल में?
क्या हिन्दू हो या मुसलमान
सिक्ख या ईसाई
पूछते ही
बर्फ़ का हिमालय
गल गया।
सच मानिए
शर्म से इस तरह पानी-पानी होते
मैंने पहली बार किसी को देखा।