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समर्पण / शशि सहगल

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जीवन और घड़ी की सुइयाँ
दोनों चल रही हैं
अपनी रफ्तार से
सभी दिन और सारे पल
मैं
तुम्हारे प्यार में स्नात
तुम्हारे लिए जीना चाहती हूँ
हाँ, केवल तुम्हारे लिए।