भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

परेम / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:41, 16 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कांई हुवै परेम?
विचारतौ उभौ हो ऐकलौ
कै याद आयगी
दादी सा री डकार लाम्बी!
"वासना पुरख री है सरप
अर लुगाई री ओट है बाम्बी!
जिण रै सरणै हुंता‘ई
अलौप हूज्यै सरप
टूटज्यै पुरख रौ दरप!"
कैंवता दादी सा,
परेम लाडी!
आ‘ई डकार हुवै
जे आदमी री सुरतां मांय करतार हुवै!