भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आत्म हत्या / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:51, 16 अक्टूबर 2013 का अवतरण
कणाई-कणाई
आवै है विचार
कै आज कोई रै
घात‘र बांथ
मर ज्यावां।
तो
कदै-कदै लागै
इण री जरूरत ई कांई है!