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ईं राजघाट पर / प्रमोद कुमार शर्मा

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ओ लोगो !
म्हारी आत्मा में उग्योड़ै
आकां रौ दूध ही सही आ कविता
पण इतरौ तो सुणौ
म्है हैला मारूं थानै
जदकि कोई नईं पुकार रैयौ है किणी नै।
ओ मेरा हमवतनो !
मैं एकान्त मांय बैठयौ
विरही-सो
लिख रैयौ हूं
आ कविता
कितरा दिन होग्या
आपानै आयां इन्नै
अठै कविता रै राजघाट पर।