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सीसे रै सामीं लुगाई / प्रमोद कुमार शर्मा

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के सोचती होवैली वा
जद होवै ऐकली !

लट्टू होवै आपरी सुन्दरता पर
या करै याद दुनिया री बदसूरती !

कीं ना कीं तो सोचती हुवैली
सीसै रै सामीं बैठी लुगाई।