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कदै रैयौ है मनुख अठै / प्रमोद कुमार शर्मा

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रोपूं कविता रौ बीज ओ
नहीं - कोई नूंतो कोनी आपनै
कै देखण आवौ इण नै।

जद कदै फूटसी ओ
बणैगो दरख्त कोई महान
अर परिन्दा आ‘र हींडसी इण री डाळयां पर
आ भी नही।

सूंपूं आज
आपणी आत्मा रौ जळ
ईं री जड़ां मांय
सोचता थकां कै
कदै कोई थक्यौ-हारयौ मनुख
गुजरसी ईं राह स्यूं
तो मिल जावै बीं नै छियां रौ एक टुकड़ौ
अर हौ जावै भरोसौ
कै कदै रैयौ है मनुख अठै।