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रचाव / मदन गोपाल लढ़ा

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म्हैं एक भाव
बीज रूप कूंपळ
थनै अरपण।

थूं म्हारी भासा
भाव मुजब गुण
संवार-संभाळ।

आपणो रचाव
जाणै मंतर
जाणै छंद
जींवतो-जागतो काव्य।