Last modified on 16 अक्टूबर 2013, at 23:21

हेत रा रंग / मदन गोपाल लढ़ा

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:21, 16 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कूड़ कोनी कथीजी
कै हेत रा
हजार रंग हूवै।

उण बगत रै बायरै में
म्हैं सूंघतो
प्रीत री सौरम
रात्यूं रास करतो
सपनां रे आगणै
हियै रचतो
एक इन्दरधनख।

बगत परवाण
हणै ई
हर रा नूंवां निरवाळा रंग
म्हारै सामीं ऊभा है
चितराम अवस बदळग्या।

स्यात
इण बेरंग
हुंवती दुनियां नै
रंगीन देखण सारू
जरूरी हुवै
हेत रंगी आंख्या।