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गीतां री दीठ !/ कन्हैया लाल सेठिया

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हाल ओळखूं हूँ
पीड़ रो उणियारो
कोनी पड़ी मोटी
म्हारै गीतां री दीठ
हाल है सबदां री
चिमठी में साच
मती अपड़ा मनैं
कलम री ठौड़ डांगडी,
ओज्यूं साव काचो है
थारो ‘भोग्योड़ो जथारथ’
थाळी‘र माचो है
खाली उपलबधि,
जिनगानी कोनी रखेल
ओ मोटो तथ
भूलगी सुवाद र लारै हू‘र
थारी अधभोळी सिंग्या
थरप्या हा घणी चिंतणां स्यूं बडेरा
मिनखाचारै रा सासता मोल
तूं कर नुंईं सिरजणां
मांड मजल रै मारग में
कुंआरा खोज,
कोई क्यूं करसी अखेज ?
पण मती काट
सिरै नांव रा नादीदा
सळू सटै दूजती भैंस !