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बिरथा कूक्यो कबीर / मदन गोपाल लढ़ा

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दुनियां रै सगळा मिंदरां में
जे आपां बजावां
एकै सागै घंट्यां
तो सुणिजैला उणरी टणकार
एवरेस्ट री चोटी माथै।

धरती री
सगळी मस्जिदां में
जे अदा हुवै नमाज
एकै भेळी
तो उणरा बोल
पूग सकै
उतरादै धू्र तांई।

आखै जगत रै
गिरजाघरां में
हुवै जै प्रार्थना
एकठ
तो उणरी गूंज
गूंजैला
आभै रै पारोपार।

बिरथा कूक्यो कबीर !
घंट्या, नमाज अर प्रार्थना रो हाको
मचा राख्यो है धरती पर
फेर थूं ईं बता
कींकर सुणीजैला
उण नंगधड़ंग
भूखै टाबर रा
बुसबुसाटिया !