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फरक / मदन गोपाल लढ़ा

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ऐक हुंकारो
भरतो म्हैं
घणै चाव सूं
जद दादी म्हारी
सुणांवता कहाणी
इण हूंस सागै
कै अबै आगै कांई ?

ऐक हूंकारो
जको भरणो पड़ै म्हनैं
धिंगाणै-धक्के
नीची नाड़ करयां
थारै सामीं
कागदां में उळझयोड़ा
हरफ चुगतां।

सांचाणी
बगत घाल देवै
सबदां में फरक!