भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपौ / मीठेश निर्मोही

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:04, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थारै मिंदरियै पूरीजतौ
संख
म्हारै घर-आंगणियै बाजतौ
कांसी-थाळ।

थारै अर
म्हारै
आपै रा
ऐहलांण।

आपां सूं ई तौ है
औ नाद
गूंजतौ आखै
आभै
क्यूं म्हारा देव?