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घर में रमती कवितावां 12 / रामस्वरूप किसान

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कई जिनावर तो
इत्ता नुगरा है
कै छात तळै
रैंवतै थकां ई
भरोसौ नीं करै
छात रौ
अर म्हारी छात में
आपरी री न्यारी
छात रचै।