भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चांद की सैर का ख्वाब / रमा द्विवेदी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:05, 11 नवम्बर 2007 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चांद पर रहने का इन्तज़ाम करने लगे हैं लोग
इक्कीसवीं सदी में मानव चांद पर-
सैर-सपाटे के लिए जायेगा,
सारे काम यंत्र करेंगे,
मानो मानव यंत्रमय हो जायेगा।

न संगिनी की खटपट,
न रोटी कमाने का चक्कर,
चक्कर लगाते-लगाते वह,
आज की राजनीति का अधिवेशन,
मंगल पर जा करेगा,
चुनावी रणनीति वहीं पर तै करेगा।

वहां पर बैठे-बैठे वह,
सब कुछ हजम कर जायेगा,
और तो और जनता के
आक्रोश से भी बच जायेगा।

कई क्लोनिंग जीव वहां नज़र आयेंगे
इस विचित्र माइक्रो दुनिया में
कोई हिटलर, कोई लादेन
कोई सफेदपोश रावण
जो वहां से भी सीता का-
हरण कर ले जायेगा ।

सबसे पहले सफेदपोश जीव ही
वहां आवास बनायेगा
चक्कर काटने में हैं वे निपुण
इसलिए चांद की सैर करवाने का
ख्वाब जनता को दिखायेंगे
जनता है बावरी
ऐसे नेता को ही जितायेंगे ॥