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घर में रमती कवितावां 23 / रामस्वरूप किसान
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गळी में रमतै
टाबरां री दड़ी
छात पर टिप्पौ खाय‘र
आंगणैं में पड़ी
झट काळजै लगाई आंगणैं
अर भोगण लाग्यौ
छात रौ परस
दड़ी रै बंट।