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कैबत आळी कविता : दो / सुनील गज्जाणी
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जळ छिब रौ सौ सार दोनां रौ
हूंवता कम-बेसी राजीनां सागै-सागै
किरकिरी बणता माणखै रै बीच
एक दिन दोनूं भिळग्या
रैवै है, आंख्यां री किरकिरी सा माणखै में
उण मिनख अर लुगाई रा
हेत रा किस्सा।