Last modified on 17 अक्टूबर 2013, at 15:38

कैबत आळी कविता : तीन / सुनील गज्जाणी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:38, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तूळी
छोटो घोचो
दबायोड़ी आपरै मांय लाय
औसरवादी
स्यात, आपरी डूबतै नै तिणकै आळी
कैबत साच करतो।