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लाडू री कोर मांय / सत्येन जोशी

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लाडू री कोर मांय, कुण मीठा कुंण खारा ?
मूण्डा मचकोळौ क्यूं, बिगड़ैला उणियारा ।

आभै री धीवड़ियौ, धरती री कूंख भरै,
गिगन भरी दीवड़ियौ, काळस रौ गरब हरै,
आंसूं टळकावौ क्यूं , साम्भेळा कुण तारा।

बोलण सूं पैला कुण, तोल करै वचना रौ,
काढै कुण अरथ अठै, कोरा-कट सुपनां रौ,
आखर उळझावौ क्यूं , उखणैला कुण भारा ?

अगन, पवन, पांणी सूं वेग घणों ई मन रौ,
बिजळी नै मात करै, पळकौ, जुग जोवन रौ,
गाडा गुड़कावौ क्यूं , दिन, छैला दुबधा रा।

हियै री उपज तकां, हालै, सैं नैण खोल,
ऊंधौ ले जावै कुण, जीवण नै, टोळ टोळ,
औगण अटकावो क्यूं, रखड़ैला परबारा ।

बातां रौ लैण दैण, बैणूं कद टाळ सकै ?
ऊपरलौ हेज घणो, भीतर रौ नैह कठै ?
कूड़ा बिलमावौ क्यूं, फाटैला मन सारा ।