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टापरो / श्याम महर्षि

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अधपकी
ईंटां सूं बणैड़ो
म्हारो घर,
जिण मांय रैय रैयो हूं
बरसां सूं म्हैं
अर म्हारा टाबर,

इण री छात रो चूनो
अर भींत रा लेवड़ा कई दिनां सूं
पड़ता रैया है,
सीलती भीतां री
आंवती बांस सूं
नीं उथबूं म्हैं,

सुख-दुख रो
साक्षी ओ म्हारो घर,
इण रै डागळै
बाजी है थाळी
हरख री कदै
तो कदैई बाजी है
शहनाई अठै

तीज त्यौंहार मनाइज्या है
इण रै आंगणै
बन्दरवाळ सजाइजी है कदै अठै
दरूजै माथै री
बगन बेलिया
बिंछावती रैयी है
पलक पांवड़ा
पावणा रै खातर

इण घर री
बाखळ मांय उगैड़ी
जूही री सुगन्ध
हरखाती रैयी है म्हारो मन

इण घर मांय
बधतो रैयो है बरसा सूं
एक लाम्बो खजूर
कै इण रै एक खूणै मांय
तुळसी रो बिरवो

जोंवतो रैयो है म्हनैं,

इण घर मांय
दुख मांय रोवणो
अर सुख मांय हंसणो
होवतो रैयो है बरसां सूं।